Menu


देवप्रयाग संगम

देवप्रयाग
—  city  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देशFlag of India.svg भारत
राज्यउत्तराखंड
ज़िलापौड़ी गढ़वाल
जनसंख्या2,144 (2001 के अनुसार )
क्षेत्रफल
• ऊँचाई (AMSL)

• 830 मीटर (2,723 फी॰)
आधिकारिक जालस्थल210.212.78.56/50cities/devprayag/english/home.asp
देवप्रयाग भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को पहली बार 'गंगा' के नाम से जाना जाता है। यहाँ श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा 'गंगा' कहलाती है। यह टेहरी से १८ मील दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही इसका भी नामकरण हुआ है।
देवप्रयाग समुद्र सतह से १५०० फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और निकटवर्ती शहर ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा ७० किमी० पर है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य के पंच प्रयागों में से एक माना जाता है। इसके अलावा इसके बारे में कहा जाता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो ३३ करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है। भागीरथी और अलकनंदा के संगम के बाद यही से पवित्र नदी गंगा का उद्भव हुआ है। यहीं पहली बार यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है।[1]
गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। यहां के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहां का सौन्दर्य अद्वितीय है। निकटवर्ती डंडा नागराज मंदिर और चंद्रवदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।[1]

प्रसिद्धि[संपादित करें]

मान्यतानुसार यहां देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने कड़ी तपस्या की थी, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। प्रयाग किसी भी संगम को कहा जाता है।[2] यह स्व.आचार्य श्री पं.चक्रधर जोशी नामक ज्योतिष्विद एवं खगोलशास्त्री का गृहस्थान था, जिन्होंने १९४६ में नकषत्र वेधशाला की स्थापना की थी। ये वेधशाला दशरथांचल नामक एक निकटस्थ पर्वत पर स्थित है। यह वेधशाला दो बड़ी दूरबीनों (टेलीस्कोप) से सुसज्जित है और यहां खगोलशास्त्र संबंधी पुस्तकों का बड़ा भंडार है। इसके अलावा यहां देश के विभिन्न भागों से १६७७ ई से अब तक की संग्रह की हुई ३००० विभिन्न संबंधित पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। आधुनिक उपकरणों के अलावा यहां अनेक प्राचीन उपकरण जैसे सूर्य घटी, जल घटी एवं ध्रुव घटी जैसे अनेक यंत्र व उपकरण हैं जो इस क्षेत्र में प्राचीन भारतीय प्रगति व ज्ञान की द्योतक हैं।
रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया, तो उन्होंने सीताजी का त्याग करने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा। तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही ४ किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है। यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये। वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है। बास में सीता जी यहाम से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे। इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है।[क] उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।[ख] इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है[3] तथा रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है।[4][ग]
देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है। रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है। गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है। केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पधारने का वर्णन मिलता है।[5][घ]

भूगोल व जनसांख्यिकी[संपादित करें]

बायें अलकनंदा और दायें भागीरथी नदियां देवप्रयाग में संगम बनाती हैं और यहां से गंगा नदी बनती है।
अलकनंदा नदी उत्तराखंड के सतोपंथ और भागीरथ कारक हिमनदों से निकलकर इस प्रयाग को पहुंचती है। नदी का प्रमुख जलस्रोत गौमुख में गंगोत्री हिमनद के अंत से तथा कुछ अंश खाटलिंग हिमनद से निकलता है। यहां की औसत ऊंचाई ८३० मीटर (२,७२३ फीट) है। २००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार[6] देवप्रयाग की कुल जनसंख्या २१४४ है, जिसमें ५२% पुरुशः और ४८% स्त्रियां हैं। यहां की औसत साक्षरता दर ७७% है, जो राष्ट्रीय साक्षरता दर ५९.५ से काफी अधिक है। इसमें पुरुष साक्षरता दर ८२% एवं महिला साक्षरता दर ७२% है। यहां की कुल जनसंख्या में से १३% ६ वर्ष की आयु से नीचे की है। यह कस्बा बद्रीनाथ धाम के पंडों का भी निवास स्थान है।

No comments:

Post a Comment

Sangam devprayaag

Devaprayāga " means " Godly Confluence " in Sanskrit. As per Hindu scriptures, Devaprayaga is the sacred event of merging t...